फेफड़ों को स्वस्थ रखने के लिए जरुरी योग अभ्यास
योग हमें उन चीज़ो को सहना सिखाता है जिन्हे ठीक नहीं किया जा सकता, और उन चीज़ो को ठीक करता है जिन्हे सहा नहीं जा सकता। आप सोच रहे होंगे की आज हम योग से समबन्धित बातें क्यों कर रहे हैं, तो आइये जानते हैं। दिन-प्रतिदिन बढ़ते हुए प्रदुषण एवं हवा में घुलते हुए जहर की वजह से कई लोग आजकल की ज़िंदगी में फेफड़ो से सम्बंधित परेशानियों का सामना करते हुए नज़र आते हैं, जिनकी वजह से न केवल उन्हें साँस लेने में अपितु काफी कम उम्र में ही छोटे-छोटे बच्चों में अस्थमा एवं साँस सम्बंधित समस्याएं देखने को मिलती हैं।
आज हम बात करने जा रहे हैं कि किस तरह हम योग की मदद से फेफड़ो को साफ़ एवं स्वास्थय रख सकते हैं ताकि फेफड़ो से सम्बंधित कोई गंभीर समस्या शरीर में बड़ी बीमारी का रूप न ले सकें। आजकल के बढ़ते हुए प्रदूषित वातावरण में किसी भी व्यक्ति के लिए योग उतना ही अवश्य है जितना की उसके द्वारा पानी का सेवन करना। ऐसा इसलिए है क्यूंकि हम बिना साँस लिए जीवित नहीं रह सकते और फिर जिस तरह प्रदुषण हवा में बढ़ता जा रहा है उस तरह हम रह भी नहीं सकते इसीलिए किस तरह योग की मदद से हम इस दुविधा से बच सकते हैं आइये बात करते हैं।
योग भारतीय कला का ही एक रूप है जिसकी मदद से हम शरीर को फिट, स्वस्थ्य एवं विविध तरह की बीमारियों एवं समस्याओं से बचा कर एक स्वस्थ जिंदगी का निर्वहन कर सकते हैं। आइए जानते हैं की किस तरह के योग मुद्राओ से हम अपने फेफड़ो को प्रदूषित वातावरण की प्रदूषित वायु से मुक्त रख सकते हैं।
कपालभाती : एक आरामदायक मुद्रा में बैठे तथा सिर एवं रीढ़ की हड्डी को सीधी रेखा में रखें, आपके हाथ एक मुद्रा में पैर के घुटनो पर होने चाहिए। दोनों नथुनों से सांस छोड़े और साथ में पेट की मांशपेशियों का जोरदार संकुचन भी जारी रखें साँस को निष्क्रिय रख कर ही ऐसा करें और यह मुद्रा सहज होनी चाहिए शरीर को तना हुआ रखें।
कपालभाती प्राणायाम के वैसे तो अनेकों फायदे हैं परन्तु सबसे अधिक महत्वपूर्ण यह शरीर को स्फूर्ति से भरता है एवं ब्लड सर्कुलेशन को भी नियमित करता है और शरीर का मेटाबोलिज्म भी अच्छा होता है। कपालभाति हमारे फेफड़ो के कार्य करने की क्षमता को भी सुचारु रूप से कार्यान्वित करता है एवं साँस लेने में कोई समस्या नहीं होती।
कपालभाती व्यायाम सभी आयु के वर्ग के लोग वैसे तो कर सकते हैं, परन्तु जिन्हे साँस सम्बन्धी समस्या हो उनको यह योग अभ्यास चिकित्सक या फिर ट्रेनर की सलाह पर ही करना चाहिए।
भुजङ्गासन : फर्श पर सीधे लेट जाएं उसके पश्चात अपने हाथो को कोहनियो के अनुरूप रखें। अब सांस अंदर लें, और अपना सिर ऊपर छाती ऊपर रखें। कोहनियों को थोड़ा सा झुका लें। अब इसी मुद्रा में रहें एवं लम्बी सांस ले एवं छोड़े।
जैसे की हम बात कर रहें है की योग के फायदों को तो भुजङ्गासन के भी महत्वपूर्ण फायदे हैं, जैसे की कंधे और गर्दन को यह आसन तनाव मुक्त रखने में मददगार साबित होता है। जिन्हे साँस सम्बन्धी परेशानियाँ या फिर फेफड़ो में कोई समस्या है उन लोगो के लिए यह योग अतिकारगर है जिसकी मदद से वह अपना स्वस्थ्य बनाये रख सकते हैं।
गर्भवती महिलाओं या फिर जिन लोगो को पीठ या पसलियों में दर्द होता है, उन्हें ये योग अभ्यास नहीं करना चाहिए। जिन लोगो का हर्निया का ऑपरेशन हुआ हो, या हाल में ही पेट से सम्बंधित कोई विकार हुआ हो उन्हें भी यह योग अभ्यास नहीं करना चाहिए।
मत्स्य आसन : पीठ के बल लेट जाएं और अपने हाथो को अपने शरीर के निचे दबा लें। सांस अंदर लें, अपने सिर और छाती को ऊपर उठाएं और फिर अपनी पीठ को जमीन पर रखकर आराम दें। अपनी कोहनियो का उपयोग शरीर का संतुलन बनाये रखने के लिए करें। छाती को थोड़ा विस्तार दें एवं गहरी सांस ले एवं छोड़ें।
मत्स्यासन एक महान योग आसन है, जो श्वसन प्रणाली पर अद्भुत काम करता है। मछली से ऑक्सीजन और रक्त के प्रवाह को फेफड़ो में बढ़ाया जाता है, फेफड़ो को क्षमता में वृद्धि होती है और अस्थमा एवं ब्रॉंकइटिस आदि जैसी श्वसन रोगो से लड़ने में मदद मिलती है।
ध्यान रखिये जिन लोगो को रीढ़ से सम्बन्धी या फिर माइग्रेन एवं इंसोम्निया जैसी किसी भी तरह की समस्या है तो उन्हें यह मत्स्यासन योग का अभ्यास नहीं करना चाहिए और यदि आपको ब्लड प्रेशर जैसी समस्या है तो भी इस योग का अभ्यास आपको अपने प्रशिक्षक या फिर ट्रेनर से पूछकर ही करनी चाहिए।
पादहस्तासन : सीधे खड़े हो जाएं एवं अपने पैरों के बीच में थोड़ा स्थान छोड़े। अपने घुटनो को थोड़ा मोड़ें और अपने ऊपरी धड़ को मोड़ते हुए पैरों तक ले आएँ , तत्पश्चात विपरीत कोहनियो को पकड़ें, अपनी भुजाओं की मदद से एक वर्गाकार आकृति बनाकर अपने सिर एवं गर्दन को ढीला छोड़ दे। इसी मुद्रा को कुछ बार करें एवं गहरी सांस लें।
विभिन्न प्रकार के नाक और गले की समस्याओं से पीड़ित व्यक्तियों को यह योग अभ्यास अवश्य ही करना चाहिए। नाक और गले सम्बन्धी बीमारियों के इलाज में मुद्रा को काफी प्रभावी माना जाता है। फेफड़ो से सम्बन्धी विकार में भी यह योग काफी लाभकारी हो सकता है।
अनुलोम-विलोम : अपनी रीढ़ की हड्डी की मुद्रा में सीधे बैठें, अपनी आंखें बंद करें और कुछ गहरी सांस लें। आपके दाहिने हाथ की उँगलियाँ विष्णु मुद्रा में होनी चाहिए तर्जनी और मध्यमा ऊँगली हथेली की और घुमाएँ, और अन्य ऊँगली को बाहर की और रखें। अपनी दाहिने हाथ को अपनी नाक पर लाएं और बाएं हाथ को अपने घुटने पर रखें। अपने बाएं नथुने से श्वांस अंदर लें, दाहिने नथुने को बंद रखें और फिर नथुने बंद रखें , सांस को कुछ सेकंड के लिए बनाए रखें। दाहिने नथुने से अब सांस छोड़ें। दाहिने नथुने से साँस अंदर लें और एक सेकंड के लिए साँस छोड़ें और बाएं नथुने से पूरी तरह से छोड़ें।
अनुलोम-विलोम को योग में सबसे अच्छा माना जाता है क्यूंकि यह विभिन्न प्रकार के रोगो का एक अकेला निवारण है। श्वसन प्रणाली एवं रक्तप्रवाह से सबंधित रोगो के लिए यह योग अभ्यास राम बाण की तरह ही काम करता है। यदि हम बात करें अपनी श्वसन प्रक्रिया की तोह यह आसान उसे काफी सुचारु रूप से नियमित करता है। हम लोग तेज़ी से या गलत ढंग से सांस लेने की प्रवृति रखते हैं, जिसके कारण हमारे शरीर पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन नहीं ले पाता। यह आसन आपको गहरी लम्बी सांस लेने की आदत डालता है जिससे स्वाश नियमन सुचारु होता है।
तो आज हमने बात की किस तरह हम योग की मदद से अपने फेफड़ो को स्वस्थ्य रख सकते हैं ताकि हमें श्वसन समबन्धी समस्याओं का सामना न करना पड़े और इस प्रदूषित वातावरण में भी खुद को श्वसन सम्बंधित बीमारियों से बचा सकें।
उम्मीद करता हूँ कि यह ब्लॉग आपकी उचित जानकारी दे पाने में समर्थ रहा होगा।